अप्रैल फूल (कविता) प्रतियोगिता हेतु01-Apr-2024
दिनांक- 01,04, 2024 दिवस- सोमवार प्रदत विषय -अप्रैल फूल
आज फर्स्ट अप्रैल अर्थात् मूर्ख दिवस/बेवकूफ दिवस का सुमार पूरे विश्व में छाया हुआ है। आज प्रत्येक स्त्री- पुरुष ,वृद्ध -बच्चे अपने भाई-बहन ,मित्र, संबंधी, शिक्षक को मूर्ख/बेवकूफ बनाने की नई-नई युक्तियांँ तलाशते हैं। जबकि उनमें से अधिकांश लोग इस दिवस की सच्चाई से अनभिज्ञ हैं, उन्हें नहीं पता कि यह मूर्ख दिवस 1 अप्रैल को ही क्यों मनाया जाता है। बस भेड़ चाल की तरह देखा-देखी मूर्ख दिवस मनाने में लगे हुए हैं।
तो आज की मेरी कविता इन्हीं मूर्ख दिवस या आज के दिन बेवकूफ बनाने वाले चहेतों को समर्पित है।
दिवस कहांँ से नया यह आया, इसका नहीं कोई साक्ष है, पूरी दुनिया में है मनता, वज़ह नहीं कोई खास है।
कब से कहांँ से दिन यहआया, ना प्रमाणित इतिहास है, सन तेरह सौ इक्यासी से, इसकी हुई शुरुआत है।
अंग्रेज़ी साहित्य के पिता, ज्योफ्री चौसर एक ग्रंथ लिखे, 1 अप्रैल और मूर्खता के मध्य, जहांँ कई संबंध दिखे।
मूर्ख बनाने की अजब प्रेरणा, रोमन त्योहार हिलेरिया लाई, भारतीय होली कर ली अनुसरण, मध्यकाल में ‘फर्स्ट ऑफ फूल’ कहाई।
इंग्लैंड राजा रिचर्ड द्वितीय, रानी बोहेमियांँ की सगाई , 32 मार्च को शुभ दिन निकला, जश्न भी खासम- खास हुई भाई।
कुछ दिन बाद एहसास हुआ, 32 दिन का ना कोई माह, यहीं से मूर्ख दिवस है पनपा, ठूठी डाली ना कोई छांँव।
पूरे विश्व में फैल गया है ले बैसाखी टूटे पांँव, मूर्ख दिवस चहूंँ और है छाया, शहर,गली ,कस्बा और गांँव।
राजा बोक्सर था यूनान का, जिसे सपने में चींटी निगली, राजा- रानी हंँस लोट-पोट थे, ज्योतिष ने हंँसी दिवस वर ली।
हिंदू नव वर्ष चैत्र प्रतिपदा, अंग्रेज़ थोपे जनवरी एक, उनकी बात जब हम ठुकराए, मूर्ख उपाधि किए हमें भेंट।
उनकी भेंट सहर्ष स्वीकार कर, आज भी कुछ लोग मूर्ख बने, अपने संस्कारों को भूले, दूजे का है वितान तने।
फर्स्ट अप्रैल नहीं वर्ष भर, प्रतिक्षण ही मूर्ख हम बनते हैं, लाॅटरी,हनी ट्रैप,ई-मेल के जरिए, नित दिन धूर्तों से ठगते हैं।
साधना शाही वाराणसी